Mughal Empire History : भारत की ऐतिहासिक गाथा में वीरता और बलिदान की कहानियां जितनी प्रमुख हैं, उतनी ही दुखद गद्दारी की घटनाएं भी हैं। भारतीय उपमहाद्वीप पर मुगलों के 800 वर्षों तक शासन करने में कई स्थानीय शासकों और व्यक्तियों की गद्दारी ने बड़ी भूमिका निभाई। अगर ये गद्दारी न हुई होती, तो शायद भारत की राजनीति और संस्कृति का इतिहास कुछ और ही होता।
जयचंद: पृथ्वीराज चौहान की हार का जिम्मेदार
1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी ने हराया। इतिहासकारों के अनुसार, इस हार में सबसे बड़ा हाथ कन्नौज के राजा जयचंद का था। जयचंद और पृथ्वीराज के बीच राजनीतिक मतभेद थे, जिसका फायदा उठाकर जयचंद ने गौरी को समर्थन दिया। इस गद्दारी के बाद भारत पर विदेशी आक्रमण और शासन का सिलसिला शुरू हुआ।
मीर जाफर: प्लासी के युद्ध का गद्दार
1757 में प्लासी का युद्ध भारतीय इतिहास में एक बड़ा मोड़ था। बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर ने अंग्रेजों से मिलकर गद्दारी की। उसने नवाब की सेना को धोखा दिया, जिससे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने आसानी से जीत हासिल की। इस एक घटना ने अंग्रेजों के भारत में शासन की नींव रख दी।
मीर कासिम: अपनों को ही धोखा दिया
मीर जाफर की तरह मीर कासिम भी अंग्रेजों के हाथों खेला गया। उसने अपने फायदे के लिए अंग्रेजों के साथ सांठगांठ की और बंगाल की जनता को लूटा। उसकी गद्दारी ने भारतीय राज्यों को कमजोर किया और अंग्रेजों को और मजबूत बना दिया।
मान सिंह: अकबर का विश्वासपात्र राजपूत
राजा मान सिंह आमेर के शासक थे, लेकिन उन्होंने मुगल सम्राट अकबर के अधीन रहकर उनकी सेवा की। उन्होंने कई राजपूत राजाओं को मुगलों की अधीनता स्वीकार करने पर मजबूर किया। अगर उन्होंने हिंदू राजाओं को एकजुट किया होता, तो मुगलों को इतने लंबे समय तक भारत पर शासन करने का अवसर नहीं मिलता।
राघोजी भोंसले और नागपुर संधि
मराठों ने अंग्रेजों के खिलाफ लंबा संघर्ष किया, लेकिन उनके ही अंदर मौजूद कुछ गद्दारों ने इस लड़ाई को कमजोर किया। राघोजी भोंसले ने नागपुर संधि के तहत अंग्रेजों के साथ मिलकर अन्य भारतीय शासकों के खिलाफ काम किया।
भारत में मुगलों और अंग्रेजों के शासन को केवल बाहरी आक्रमणों की वजह से नहीं, बल्कि भारतीयों के बीच मौजूद गद्दारों की वजह से भी बढ़ावा मिला। अगर इन लोगों ने अपनी स्वार्थी सोच से ऊपर उठकर मातृभूमि के लिए एकजुटता दिखाई होती, तो शायद भारत पर विदेशी शासन इतना लंबा न चलता। इतिहास से हमें यही सीख लेनी चाहिए कि आंतरिक एकता और देशभक्ति ही राष्ट्र की असली शक्ति है।