Delhi Dehradun Expressway : विकसित भारत के लिए सबसे जरूरी है कि भारत में शानदार सड़क बनें, हाईवे और एक्सप्रेस वे भी बनें। लेकिन कई बार छोटे-छोटे मामलों की वजह से बड़े बड़े काम रुक जाते हैं। ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद (Ghaziabad) में दिल्ली देहरादून एक्सप्रेस वे से जुड़ा है। एक अंग्रेजी अखबार ने मामले में एक शानदार रिपोर्ट तैयार की है। ये रिपोर्ट भारत के विकास और एक आम आदमी के बीच की जंग दिखाती है।
90 के दशक का मंडोला और भूमि अधिग्रहण
दरअसल 90 के दशक में मंडोला का स्वरूप बिल्कुल अलग था। वीरसेन सरोहा और उनका परिवार 1,600 वर्ग मीटर जमीन पर बने एक साधारण घर में रहते थे। चारों ओर खेत और ग्रामीण घर थे। 1998 में, यूपी हाउसिंग बोर्ड ने मंडोला हाउसिंग स्कीम के लिए छह गांवों से 2,614 एकड़ भूमि अधिग्रहित करने की अधिसूचना जारी की।
धीरे-धीरे अधिकतर परिवारों ने अपनी ज़मीन दे दी, लेकिन वीरसेन ने मुआवजे की शर्तों से असहमति जताते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। अदालत ने उनके भूखंड के अधिग्रहण पर रोक लगा दी। इस कानूनी लड़ाई और विरोध के चलते यह हाउसिंग स्कीम कभी साकार नहीं हो सकी।
Expressways परियोजना और वीरसेन का विरोध
इसी बीच, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के लिए ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की। यूपी हाउसिंग बोर्ड ने NHAI को वो जमीन देने पर सहमति जताई, जिसमें वीरसेन का घर भी शामिल था। लेकिन वीरसेन के परिवार ने झुकने से इनकार कर दिया। आज, ये घर वैसा ही खड़ा है जैसा नब्बे के दशक में था, जबकि इसके आसपास सबकुछ बदल चुका है। एक ओर अक्षरधाम से लेकर दूसरी ओर उत्तराखंड की पहाड़ियों तक फैला एक्सप्रेसवे है।
Delhi Dehradun Expressway पर अड़चनें
NHAI अक्षरधाम और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे (EPE) के बीच एक्सप्रेसवे का निर्माण दो खंडों में कर रहा है – अक्षरधाम से लोनी (14.7 KM ) और लोनी से खेकड़ा (16 KM)। इन दोनों खंडों का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है, लेकिन वीरसेन के 1,600 वर्ग मीटर की जमीन की वजह से ये काम बाधित है। पूरा 212 KM का एक्सप्रेसवे जून तक खुलने की संभावना है।
NHAI के एक अधिकारी का दावा है कि, “मुकदमेबाजी की वजह से निर्माण कार्य रुका हुआ है, क्योंकि परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है।” 1998 में जब मंडोला हाउसिंग प्रोजेक्ट की घोषणा हुई थी, तब सरकार ने 1,100 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से भूमि अधिग्रहण की पेशकश की थी, जिससे लगभग 1,000 किसान और मकान मालिक प्रभावित हुए। धीरे-धीरे 94% लोगों ने मुआवजा स्वीकार कर लिया, लेकिन वीरसेन ने मना कर दिया।
भूमि विवाद और कानूनी प्रक्रिया
मंडोला में ज्यादा मुआवजे की मांग को लेकर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नीरज त्यागी ने कहा, “जिन लोगों ने जमीन देने से इनकार किया, वे चाहते थे कि मुआवज़े की दरें बढ़ाई जाएं।” वीरसेन ने 2007 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया। लंबे समय तक अदालत में मामला चलने के कारण, 2010 में यूपी हाउसिंग बोर्ड (UP Housing Board) को उनकी ज़मीन का सीमांकन करना पड़ा। लेकिन समाधान तक पहुंचने से पहले ही वीरसेन का निधन हो गया।
2017 और 2020 के बीच NHAI की एक्सप्रेसवे योजना साकार हुई। हाउसिंग बोर्ड के एक सूत्र के अनुसार, “NHAI को रैंप बनाने के लिए मंडोला के पास ज़मीन की जरूरत थी। 2020 में हाउसिंग बोर्ड ने NHAI को ये भूमि सौंप दी, जिसमें वीरसेन का घर भी शामिल था।” 2024 में, वीरसेन के पोते लक्ष्यवीर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
ये तर्क देते हुए कि ये ज़मीन हाउसिंग बोर्ड को नहीं दी जानी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच को भेज दिया है, जिसने 16 अप्रैल को सुनवाई निर्धारित की है। कोर्ट ने तेज़ी से फैसला लेने का निर्देश दिया है, क्योंकि एक्सप्रेसवे का उद्घाटन इस पर निर्भर करता है।
दिल्ली-बागपत यात्रा में होगा बड़ा बदलाव
अक्षरधाम-ईपीई सेक्शन के खुलने से दिल्ली-बागपत की दूरी मात्र 30 मिनट में पूरी हो सकेगी। NHAI के अनुसार, “करीब 20 KM का एलिवेटेड सेक्शन इस मार्ग का हिस्सा होगा, जो अक्षरधाम से लोनी होते हुए बागपत तक निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करेगा।”