बनारस की मसान होली: जहां श्मशान में खेली जाती है रंगों की अनूठी होली

वाराणसी : भारत में होली के कई रंग हैं, लेकिन बनारस की मसान होली अपने अनोखे अंदाज के लिए मशहूर है। यहां होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि मृत्यु और जीवन के बीच का अद्भुत संगम है। ये अनूठी परंपरा काशी के मणिकर्णिका घाट पर होती है, जहां जलती चिताओं के बीच गुलाल उड़ता है और भूतभावन भगवान शिव के भक्त अनोखे अंदाज में ये पर्व मनाते हैं।

क्या है मसान होली?

मसान होली का आयोजन महाशिवरात्रि के बाद पड़ने वाली एकादशी को किया जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव खुद महाश्मशान वासी हैं और मृत्यु के इस सत्य को स्वीकार करना ही मोक्ष की ओर बढ़ने का मार्ग है। इसलिए, भक्त मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म और रंगों के साथ होली खेलते हैं।

कैसे होती है मसान होली?

  1. अघोरी साधुओं की अनूठी परंपरा – मसान होली में अघोरी साधु विशेष रूप से भाग लेते हैं। वे शव भस्म को शरीर पर लगाकर शिव का आह्वान करते हैं।
  2. ढोल-नगाड़ों की गूंज – इस दौरान घाट पर विशेष रूप से शिव भजनों और हर-हर महादेव के जयकारों की गूंज रहती है।
  3. गुलाल और भस्म की होली – यहां रंगों के साथ-साथ चिता भस्म भी उड़ाया जाता है, जिससे इस होली को ‘मसान होली’ कहा जाता है।
  4. भगवान शिव की बारात – कई स्थानों पर भगवान शिव की बारात निकाली जाती है, जिसमें भक्तजन रंग खेलते हैं और नृत्य करते हैं।
मसान होली का महत्व HCN News

मसान होली का महत्व

इस होली को मनाने के पीछे एक गहरा आध्यात्मिक संदेश छिपा है। ये परंपरा हमें मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीवन को आनंद और भक्ति के साथ जीने की सीख देती है। काशी को मोक्ष नगरी माना जाता है, और यहां ये अनूठी होली मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र को स्वीकारने का प्रतीक है।

देश-दुनिया से आते हैं श्रद्धालु

मसान होली सिर्फ बनारस तक सीमित नहीं है, बल्कि देश-विदेश के हजारों श्रद्धालु इसे देखने और इसमें शामिल होने के लिए आते हैं। कई फोटोग्राफर और डॉक्यूमेंट्री मेकर्स भी इसे अपने कैमरे में कैद करने पहुंचते हैं।

मसान होली बनाम पारंपरिक होली

जहां एक ओर भारत में होली प्रेम, भाईचारे और रंगों का उत्सव है, वहीं बनारस की मसान होली मृत्यु के सत्य को अपनाने और मोक्ष की ओर बढ़ने का पर्व है। ये बनारसी परंपराओं और शिव भक्ति की गहराई को दर्शाता है।

बनारस की मसान होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि शिवत्व की आराधना का एक अद्भुत रूप है। ये परंपरा बताती है कि बनारस सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और मोक्ष का जीवंत संगम है। अगर आपने अभी तक ये अनोखी होली नहीं देखी है, तो एक बार जरूर बनारस के मणिकर्णिका घाट की इस अलौकिक होली का अनुभव लें।

बरसाने की होली क्यों है इतनी फेमस ?, कैसी होती है बरसाने की लट्ठमार होली

Barsana Holi Festivle 2025: होली का त्योहार भारत के हर कोने में उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। लेकिन जब बात ब्रजभूमि की हो, तो इसका रंग और भी निराला हो जाता है। खासतौर पर बरसाने की लट्ठमार होली दुनिया भर में मशहूर है। ये न केवल रंगों का त्योहार है, बल्कि राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी और ब्रज की पारंपरिक संस्कृति का जीवंत प्रतीक भी है।

बरसाने की होली का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

बरसाना, भगवान श्रीकृष्ण की प्रेयसी राधा जी का जन्मस्थान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ नंदगांव से बरसाना आते थे और राधा व उनकी सखियों के साथ होली खेलते थे, तब राधा की सखियां उनकी छेड़छाड़ का जवाब लाठियों से देती थीं। इस परंपरा को ही आज ‘लट्ठमार होली’ के रूप में मनाया जाता है।

कैसे मनाई जाती है बरसाने की लट्ठमार होली?

बरसाने की होली का उत्सव कई दिनों तक चलता है। इसमें विशेष रूप से दो प्रमुख दिन होते हैं:

  1. लड्डू मार होली (होली खेलने की शुरुआत) – ये उत्सव राधा रानी के मंदिर में होता है, जहां भक्त गुलाल उड़ाते हैं और एक-दूसरे को लड्डू खिलाते हैं।
  2. लट्ठमार होली – इस दिन नंदगांव के पुरुष बरसाना आते हैं और राधा की सखियां उन पर लाठियां बरसाती हैं। पुरुष ढाल लेकर खुद को बचाने की कोशिश करते हैं, और ये दृश्य देखने लायक होता है।

होली के इस अनोखे अंदाज की खास बातें

  • राधा-कृष्ण के प्रेम की झलक: ये केवल रंगों का नहीं, बल्कि भक्ति और प्रेम का उत्सव है, जहां हर कोई खुद को श्रीकृष्ण और राधा की भक्ति में रंगा हुआ महसूस करता है।
  • भव्य आयोजन और श्रद्धालुओं की भीड़: इस अनोखी होली को देखने के लिए देश-विदेश से हजारों लोग यहां आते हैं।
  • महिलाओं का विशेष अधिकार: लट्ठमार होली में महिलाओं को पुरुषों पर लाठियां बरसाने का मौका मिलता है, जो समाज में महिलाओं की शक्ति और सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
  • गुलाल और अबीर का अद्भुत संगम: यहां रंगों की ऐसी धूम होती है कि पूरा वातावरण कृष्ण भक्ति में रंग जाता है।

बरसाने की होली का पर्यटन और आर्थिक पहलू

हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक इस ऐतिहासिक त्योहार का हिस्सा बनने के लिए बरसाना पहुंचते हैं। इससे स्थानीय व्यापारियों को काफी लाभ होता है। होटल, रेस्टोरेंट, फूलों और रंगों की दुकानें, लोकगीत गायकों और कलाकारों को रोजगार मिलता है, जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है।

कैसे पहुंचे बरसाना?

बरसाना, उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है और दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 150 किमी है।

  • निकटतम रेलवे स्टेशन: मथुरा जंक्शन
  • निकटतम हवाई अड्डा: आगरा या दिल्ली
  • सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए मथुरा से बसें और टैक्सी उपलब्ध रहती हैं।

बरसाने की होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और परंपरा का संगम है। ये त्योहार हर वर्ष राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम को जीवंत करने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति की अद्भुत झलक भी प्रस्तुत करता है। अगर आपने अब तक बरसाने की लट्ठमार होली नहीं देखी, तो इस बार जरूर यहां का रुख करें और इस अनोखे त्योहार का हिस्सा बनें।

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